नरेंद्र नाथन
पिछले महीने की शुरुआत में सेंसेक्स 25,000 पॉइंट्स से नीचे चला गया था। उसके बाद से इसमें 1,000 पॉइंट्स से अधिक की रिकवरी आ चुकी है। हालांकि, मार्केट में उतार-चढ़ाव का दौर अभी थमा नहीं है। मंगलवार को रिजर्व बैंक के आधा पर्सेंटेज पॉइंट रेट घटाने के बाद बुधवार को बाजार में अच्छी तेजी आई, लेकिन उसे अब भी अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी का डर सता रहा है। ग्लोबल मार्केट में मचनेवाली खलबली का असर दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स सहित भारत पर पड़ना तय है।
इस बारे में मिजुहो बैंक, इंडिया के रिसर्च हेड और चीफ स्ट्रैटिजिस्ट तीर्थंकर पटनायक ने कहा, 'भारत की मैक्रो-इकनॉमिक कंडिशन सुधर रही है। दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स के मुकाबले इसकी स्थिति काफी मजबूत है। हालांकि, अगर विदेशी निवेशकों का इमर्जिंग मार्केट्स को लेकर नजरिया नेगेटिव होता है तो उसका असर भारत पर भी पड़ेगा।' ग्लोबल इकॉनमी को लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं है वहीं, मार्केट पर बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों का भी असर पड़ेगा। इसका फायदा किस तरह से उठाया जा सकता है? यहां हम कुछ ऐसे टिप्स दे रहे हैं, जिनसे लॉन्ग टर्म में आप इस वोलैटिलिटी का फायदा उठा सकते हैं।
क्वॉलिटी स्टॉक्स चुनें
हालिया करेक्शन के चलते कई ब्लू चिप स्टॉक्स सस्ते हो गए हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इनमें से अच्छी कंपनियां चुननी चाहिए, भले ही उसमें बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आई हो। इसकी वजह यह है कि लॉन्ग टर्म में वेल्थ क्रिऐशन के लिए हाई क्वॉलिटी स्टॉक्स में पैसा लगाना जरूरी है। पिछले पांच साल में जहां निफ्टी इंडेक्स ने 30 पर्सेंट का रिटर्न दिया है, वहीं क्वॉलिटी 30 इंडेक्स से 81 पर्सेंट का ऐब्सॉल्यूट रिटर्न मिला है। निफ्टी इंडेक्स में 50 बड़ी कंपनियां शामिल हैं। अमेरिका के जाने-माने इन्वेस्टर वॉरन बफे कंपनियों को तीन कैटिगरी- महान, अच्छी और बदहाल में बांटते हैं। इसका हवाला देते हुए मोतीलाल ओसवाल सिक्यॉरिटीज के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर रामदेव अग्रवाल ने कहा, 'लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स को सिर्फ महान या अच्छी कंपनियों में पैसा लगाना चाहिए।'
अब सवाल यह उठता है कि क्वॉलिटी स्टॉक्स की पहचान कैसे करें। इसकी शुरुआत बैलेंस शीट से होनी चाहिए। एंबिट कैपिटल में इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज के स्ट्रैटिजिस्ट गौरव मेहता ने बताया, 'सबसे पहले आपको कॉर्पोरेट गवर्नेंस और बैलेंस शीट की क्वॉलिटी देखनी चाहिए। आपको देखना चाहिए कि कंपनी अपनी बहीखाते की जो जानकारी दे रही है, क्या उससे उसके बिजनस के स्टेटस का पता चलता है।'
कंपनियां जो डिस्क्लोजर देती हैं, उनसे बिजनस की क्वॉलिटी का पता चलता है। अगर आपको कंपनी की बैलेंस शीट पर भरोसा है तो फिर उसको मार्केट शेयर, रिटर्न ऑन इक्विटी जैसे पैरामीटर्स पर परखा जा सकता है। कंपनी कैपिटल यानी पूंजी का इस्तेमाल बिजनस में किस तरह करती है, यह बात भी मायने रखती है। मेहता का कहना है, 'इन्वेस्टर्स को उन कंपनियों से दूर रहना चाहिए, जिनका ध्यान सिर्फ सेल्स बढ़ाने पर रहता है। इनके बजाय वैसी कंपनियों को चुनना चाहिए, जो सेल्स के साथ प्रॉफिट बढ़ाने पर ध्यान देती हैं।'
ग्रेट कंपनियां वो होती हैं, जो अपने सेगमेंट की दूसरी कंपनियों से कई मामलों में आगे रहती हैं। मार्केट भी भाषा में इसे मोट कहते हैं। क्वॉलिटी कंपनी का रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) नियमित तौर पर अच्छा बना रहता है। किसी कंपनी का मोट कितना दमदार है, इसका पता रिटर्न ऑन इक्विटी से लगाया जा सकता है। अग्रवाल ने बताया, 'क्वॉलिटी कंपनी वह होती है, जिसका आरओई कम से कम 20 पर्सेंट हो। अगर रिटर्न ऑन इक्विटी इससे ज्यादा है तो यह और भी अच्छा है। बुरे वक्त में भी क्वॉलिटी कंपनियों का आरओई 15 पर्सेंट से नीचे नहीं जाता।'
ग्रेट कंपनियों का फोकस शेयरहोल्डर्स की वैल्यू बढ़ाने पर होता है। कंपनी का मैनेजमेंट भी बहुत अहमियत रखता है। अग्रवाल का कहना है, 'ग्रेट बिजनस और ग्रेट मैनेजमेंट के मिलने से क्वॉलिटी कंपनी बनती है।' अगर आपको कभी गुड मैनेजमेंट और अच्छी बैलेंस शीट के बीच चुनना पड़े तो अच्छे मैनेजमेंट पर भरोसा करना चाहिए। इस मामले में सेंट्रम कैपिटल के चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर और एग्जिक्युटिव डायरेक्टर कुंज बंसल कहते हैं, 'अगर कंपनी का मैनेजमेंट अच्छा है तो बैलेंस शीट का देर-सबेर बढ़िया होना तय है। अगर मैनेजमेंट बुरा है तो वह अच्छी बैलेंस शीट का भी कचरा कर सकता है।'
लॉन्ग टर्म नजरिया रखें
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद शेयर बाजार में तेजी शुरू हुई। इससे इन्वेस्टर्स को 2-3 महीने में ही अच्छा पैसा बनाने का मौका मिल गया। बंसल ने बताया, 'उस वक्त लोगों ने पैसा बनाया, फिर भूल गए कि शेयर बाजार से वेल्थ क्रिऐट करने में समय लगता है। मार्केट के साथ रिस्क भी जुड़ा होता है। हालिया करेक्शन ने लोगों को यह बात फिर याद दिला दी है।'
इसलिए सबसे पहले आपको यह तय करना होगा कि आप ट्रेडर हैं या इन्वेस्टर। ट्रेडर्स का नजरिया आम तौर पर साल भर से कम का होता है। शॉर्ट टर्म इन्वेस्टर्स एक से तीन साल के लिए स्टॉक में पैसा लगाते हैं। लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स का नजरिया तीन साल से अधिक का होता है। इस बारे में बजाज कैपिटल के वाइस चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव दीप बजाज कहते हैं, 'लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स को बाजार में जमीन खरीदने वाले नजरिये के साथ उतरना चाहिए। जब आप शहर के बाहरी इलाके में जमीन खरीदते हैं तो आप 10-15 साल तक रिटर्न की उम्मीद नहीं करते।'
अगर आप ट्रेडिंग और इन्वेस्टमेंट दोनों करना चाहते हैं तो आपको योजना भी उसी हिसाब से बनानी चाहिए। बंसल कहते हैं, 'ट्रेडिंग और इन्वेस्टमेंट के लिए कैपिटल अलग-अलग रखना चाहिए और उसको मेंटेन करना चाहिए, भले ही बाजार की हालत कैसी भी हो।'
लालच बुरी बला
बाजार में काफी उतार-चढ़ाव होने पर इन्वेस्टमेंट के मौके बनते हैं। ऐसे समय में आपको पैसा लगाना चाहिए लेकिन, इसमें सावधानी बरतना जरूरी है। वोलैटिलिटी वाले दौर में अक्सर लोग ट्रेडर बन जाते हैं। हालांकि, इस तरह का मार्केट ट्रेडर्स के लिए भी बहुत सुरक्षित नहीं होता। इस बारे में ओपीसी ऐसेट सलूशन के एग्जिक्युटिव चेयरमैन अजय बग्गा ने कहा, 'हाल में शेयर बाजार में जिस तरह का उतार-चढ़ाव दिखा है, वैसा हमने इधर कुछ साल में नहीं देखा था। जब मार्केट में इस तरह की वोलैटिलिटी होती है, तब छोटे ट्रेडर्स को दूर रहना चाहिए। मार्केट के सेटल होने के बाद ही पैसा लगाना चाहिए।'
मार्केट में उतार-चढ़ाव बढ़ने पर छोटे निवेशक अक्सर घबरा जाते हैं। उन्हें लगता है कि वे 'मार्केट को टाइम' कर सकते हैं यानी शेयर बाजार जिस लेवल से रिकवर करने वाला है, वे उस लेवल की पहचान कर सकते हैं। इस चक्कर में वे अक्सर अधिक ट्रेडिंग कर बैठते हैं। इससे उन्हें ब्रोकरेज चार्ज के तौर पर काफी नुकसान हो सकता है।
ब्रोकरेज फर्म्स भी उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने की कोशिश करती हैं और कमाई बढ़ाने के लिए उन्हें अधिक ट्रेडिंग की सलाह देते हैं। मिसाल के लिए, आईसीआईसीआई डायरेक्ट ने हाल ही में 'बुलेट ट्रेड' प्लान शुरू किया है। इसमें अगर ट्रेड पांच मिनट में स्क्वेयर ऑफ किया जाता है तो कोई ट्रेडिंग चार्ज नहीं लगता। एक और बात यह है कि मोबाइल ट्रेडिंग के चलते शेयरों की खरीद-फरोख्त बहुत आसान हो गई है। इससे भी स्मॉल इन्वेस्टर्स अधिक ट्रेडिंग कर रहे हैं।
घबराहट में बेचने से बचें
लॉन्ग टर्म में भारत की इकनॉमिक ग्रोथ अच्छी रहेगी। इसलिए मार्केट में गिरावट आने पर उन्हें पैनिक सेलिंग नहीं करनी चाहिए। ऐसे हालात में बाजार से बाहर निकलने की जरूरत नहीं है। याद रखिए कि शेयर बाजार से पैसा बनाने के लिए क्वॉलिटी स्टॉक्स को चुनना जरूरी है। जैसा कि वॉरन बफे ने कहा है, 'मार्केट ऐसी जगह है, जहां बेसब्रों का पैसा धीरज रखने वालों के पास चला जाता है।' ठीक ऐसे ही शेयरों की खरीदारी में भी जल्दबाजी दिखाने की जरूरत नहीं है। निर्मल बांग सिक्यॉरिटीज के प्रिंसिपल और हेड मेहराबून ईरानी कहते हैं, 'कॉर्पोरेट अर्निंग ग्रोथ के हिसाब से मार्केट में अजस्टमेंट हो रहा है। ऐसे मार्केट में सही लेवल पर पैसा लगाने के मौके मिलते रहते हैं।'
एसआईपी को मत रोकिए
अगर शॉर्ट टर्म में मार्केट गिरने की आशंका हो, तो लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स को उसके चलते सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लांस (एसआईपी) रोकने की जरूरत नहीं है। अगर आप एसआईपी रोकते हैं तो कम दाम पर शेयर खरीदने का मौका हाथ से निकल सकता है। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का फायदा उठाना चाहते हैं तो आपको एसआईपी की रकम बढ़नी चाहिए। बजाज का कहना है, 'म्यूचुअल फंड इन्वेस्टर्स को मार्केट में गिरावट आने पर उतने ही पैसे में ज्यादा यूनिट्स मिलती हैं, इसलिए लॉन्ग टर्म एसआईपी इन्वेस्टर्स को वोलैटिलिटी से खुश होना चाहिए। एसआईपी बंद करने के बजाय उन्हें अपना इन्वेस्टमेंट बढ़ा देना चाहिए।' एसआईपी को मार्केट में उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने के लिहाज से बनाया गया है। बग्गा के मुताबिक, 'किसी महीने में कई दिन तक इन्वेस्ट करने पर एसआईपी के बेनेफिट बढ़ते हैं।' मिसाल के लिए, हर महीने की पांचवीं तारीख को इनवेस्ट करने के बजाय आप उस महीने के चार दिनों में रकम लगा सकते हैं।
लार्ज कैप पर फोकस
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव की वजह ग्लोबल फैक्टर्स हैं। चीन में इकनॉमिक स्लोडाउन और अमेरिका में इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी की आशंका के चलते विदेशी निवेशक बिकवाली कर रहे हैं। इससे लार्ज कैप स्टॉक्स भी काफी सस्ते हो गए हैं। इंडिया निवेश सिक्यॉरिटीज के दलजीत सिंह कोहली का कहना है, 'लार्ज कैप स्टॉक्स में मिड कैप के मुकाबले ज्यादा गिरावट आई है। इसलिए लार्ज कैप में पैसा लगाना चाहिए।' मिड कैप स्टॉक्स अभी लार्ज कैप शेयरों की तुलना में अधिक वैल्यूएशन पर मिल रहे हैं। यह ठीक नहीं है। जहां बीएसई सेंसेक्स 20.72 के पीई पर ट्रेड कर रहा है, वहीं मिड कैप इंडेक्स 24.49 के पीई पर है। हालिया करेक्शन में अगर मिड कैप स्टॉक्स मजबूती से टिके हुए हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि आगे भी ऐसा ही होगा। इस बारे में मिजुहो बैंक के पटनायक ने कहा, 'अगर मौजूदा स्तर से रिस्क बढ़ता है तो मिड कैप में गिरावट बढ़ सकती है। इसका मतलब यह है कि शॉर्ट टु मीडियम टर्म में मिड कैप स्टॉक्स लार्ज कैप शेयरों से अधिक रिटर्न नहीं देंगे।' मिड कैप शेयरों में पैसा लगाते वक्त इनवेस्टर्स को कंपनियों के साइज का भी ख्याल रखना चाहिए। बग्गा के मुताबिक, 'अभी मिड कैप के बजाय लार्ज कैप पर ध्यान देने में फायदा है।'
पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करें
बग्गा ने यह भी बताया कि इन्वेस्टर्स को गिनी-चुनी कंपनियों में ही पूरा पैसा नहीं लगाना चाहिए। उन्हें डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो तैयार करना चाहिए। अगर आप कुछ 'हॉट स्टॉक्स' में पैसा लगाते हैं तो अच्छे समय में ज्यादा रिटर्न मिल सकता है, लेकिन बुरे वक्त में आपको इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। मिसाल के लिए, एमटेक ऑटो फरवरी, 2014 में 65 रुपये का शेयर था और उस साल जून तक वह 260 रुपये का हो गया था। उसके बाद साल भर तक इसमें स्टेबिलिटी दिखी। हालांकि, अगस्त 2015 में 170 रुपये के लेवल से इसमें तेज गिरावट आई और सितंबर में यह 28 रुपये का रह गया।
आदर्श स्थिति में रिटेल इन्वेस्टर्स को म्यूचुअल फंड के जरिए पैसा लगाना चाहिए। इससे उन्हें डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो का फायदा मिलता है। जो लोग सीधे शेयर खरीद रहे हैं, उन्हें भी डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बनाना चाहिए। बंसल का कहना है कि आदर्श पोर्टफोलियो में 15 से 20 शेयर होने चाहिए। इससे रिस्क काफी कम हो जाता है और आपको बहुत ज्यादा शेयरों को ट्रैक भी नहीं करना पड़ता।
पिछले महीने की शुरुआत में सेंसेक्स 25,000 पॉइंट्स से नीचे चला गया था। उसके बाद से इसमें 1,000 पॉइंट्स से अधिक की रिकवरी आ चुकी है। हालांकि, मार्केट में उतार-चढ़ाव का दौर अभी थमा नहीं है। मंगलवार को रिजर्व बैंक के आधा पर्सेंटेज पॉइंट रेट घटाने के बाद बुधवार को बाजार में अच्छी तेजी आई, लेकिन उसे अब भी अमेरिका में ब्याज दरों में बढ़ोतरी का डर सता रहा है। ग्लोबल मार्केट में मचनेवाली खलबली का असर दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स सहित भारत पर पड़ना तय है।
इस बारे में मिजुहो बैंक, इंडिया के रिसर्च हेड और चीफ स्ट्रैटिजिस्ट तीर्थंकर पटनायक ने कहा, 'भारत की मैक्रो-इकनॉमिक कंडिशन सुधर रही है। दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स के मुकाबले इसकी स्थिति काफी मजबूत है। हालांकि, अगर विदेशी निवेशकों का इमर्जिंग मार्केट्स को लेकर नजरिया नेगेटिव होता है तो उसका असर भारत पर भी पड़ेगा।' ग्लोबल इकॉनमी को लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं है वहीं, मार्केट पर बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों का भी असर पड़ेगा। इसका फायदा किस तरह से उठाया जा सकता है? यहां हम कुछ ऐसे टिप्स दे रहे हैं, जिनसे लॉन्ग टर्म में आप इस वोलैटिलिटी का फायदा उठा सकते हैं।
क्वॉलिटी स्टॉक्स चुनें
हालिया करेक्शन के चलते कई ब्लू चिप स्टॉक्स सस्ते हो गए हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इनमें से अच्छी कंपनियां चुननी चाहिए, भले ही उसमें बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आई हो। इसकी वजह यह है कि लॉन्ग टर्म में वेल्थ क्रिऐशन के लिए हाई क्वॉलिटी स्टॉक्स में पैसा लगाना जरूरी है। पिछले पांच साल में जहां निफ्टी इंडेक्स ने 30 पर्सेंट का रिटर्न दिया है, वहीं क्वॉलिटी 30 इंडेक्स से 81 पर्सेंट का ऐब्सॉल्यूट रिटर्न मिला है। निफ्टी इंडेक्स में 50 बड़ी कंपनियां शामिल हैं। अमेरिका के जाने-माने इन्वेस्टर वॉरन बफे कंपनियों को तीन कैटिगरी- महान, अच्छी और बदहाल में बांटते हैं। इसका हवाला देते हुए मोतीलाल ओसवाल सिक्यॉरिटीज के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर रामदेव अग्रवाल ने कहा, 'लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स को सिर्फ महान या अच्छी कंपनियों में पैसा लगाना चाहिए।'
अब सवाल यह उठता है कि क्वॉलिटी स्टॉक्स की पहचान कैसे करें। इसकी शुरुआत बैलेंस शीट से होनी चाहिए। एंबिट कैपिटल में इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज के स्ट्रैटिजिस्ट गौरव मेहता ने बताया, 'सबसे पहले आपको कॉर्पोरेट गवर्नेंस और बैलेंस शीट की क्वॉलिटी देखनी चाहिए। आपको देखना चाहिए कि कंपनी अपनी बहीखाते की जो जानकारी दे रही है, क्या उससे उसके बिजनस के स्टेटस का पता चलता है।'
कंपनियां जो डिस्क्लोजर देती हैं, उनसे बिजनस की क्वॉलिटी का पता चलता है। अगर आपको कंपनी की बैलेंस शीट पर भरोसा है तो फिर उसको मार्केट शेयर, रिटर्न ऑन इक्विटी जैसे पैरामीटर्स पर परखा जा सकता है। कंपनी कैपिटल यानी पूंजी का इस्तेमाल बिजनस में किस तरह करती है, यह बात भी मायने रखती है। मेहता का कहना है, 'इन्वेस्टर्स को उन कंपनियों से दूर रहना चाहिए, जिनका ध्यान सिर्फ सेल्स बढ़ाने पर रहता है। इनके बजाय वैसी कंपनियों को चुनना चाहिए, जो सेल्स के साथ प्रॉफिट बढ़ाने पर ध्यान देती हैं।'
ग्रेट कंपनियां वो होती हैं, जो अपने सेगमेंट की दूसरी कंपनियों से कई मामलों में आगे रहती हैं। मार्केट भी भाषा में इसे मोट कहते हैं। क्वॉलिटी कंपनी का रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) नियमित तौर पर अच्छा बना रहता है। किसी कंपनी का मोट कितना दमदार है, इसका पता रिटर्न ऑन इक्विटी से लगाया जा सकता है। अग्रवाल ने बताया, 'क्वॉलिटी कंपनी वह होती है, जिसका आरओई कम से कम 20 पर्सेंट हो। अगर रिटर्न ऑन इक्विटी इससे ज्यादा है तो यह और भी अच्छा है। बुरे वक्त में भी क्वॉलिटी कंपनियों का आरओई 15 पर्सेंट से नीचे नहीं जाता।'
ग्रेट कंपनियों का फोकस शेयरहोल्डर्स की वैल्यू बढ़ाने पर होता है। कंपनी का मैनेजमेंट भी बहुत अहमियत रखता है। अग्रवाल का कहना है, 'ग्रेट बिजनस और ग्रेट मैनेजमेंट के मिलने से क्वॉलिटी कंपनी बनती है।' अगर आपको कभी गुड मैनेजमेंट और अच्छी बैलेंस शीट के बीच चुनना पड़े तो अच्छे मैनेजमेंट पर भरोसा करना चाहिए। इस मामले में सेंट्रम कैपिटल के चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर और एग्जिक्युटिव डायरेक्टर कुंज बंसल कहते हैं, 'अगर कंपनी का मैनेजमेंट अच्छा है तो बैलेंस शीट का देर-सबेर बढ़िया होना तय है। अगर मैनेजमेंट बुरा है तो वह अच्छी बैलेंस शीट का भी कचरा कर सकता है।'
लॉन्ग टर्म नजरिया रखें
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद शेयर बाजार में तेजी शुरू हुई। इससे इन्वेस्टर्स को 2-3 महीने में ही अच्छा पैसा बनाने का मौका मिल गया। बंसल ने बताया, 'उस वक्त लोगों ने पैसा बनाया, फिर भूल गए कि शेयर बाजार से वेल्थ क्रिऐट करने में समय लगता है। मार्केट के साथ रिस्क भी जुड़ा होता है। हालिया करेक्शन ने लोगों को यह बात फिर याद दिला दी है।'
इसलिए सबसे पहले आपको यह तय करना होगा कि आप ट्रेडर हैं या इन्वेस्टर। ट्रेडर्स का नजरिया आम तौर पर साल भर से कम का होता है। शॉर्ट टर्म इन्वेस्टर्स एक से तीन साल के लिए स्टॉक में पैसा लगाते हैं। लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स का नजरिया तीन साल से अधिक का होता है। इस बारे में बजाज कैपिटल के वाइस चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव दीप बजाज कहते हैं, 'लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स को बाजार में जमीन खरीदने वाले नजरिये के साथ उतरना चाहिए। जब आप शहर के बाहरी इलाके में जमीन खरीदते हैं तो आप 10-15 साल तक रिटर्न की उम्मीद नहीं करते।'
अगर आप ट्रेडिंग और इन्वेस्टमेंट दोनों करना चाहते हैं तो आपको योजना भी उसी हिसाब से बनानी चाहिए। बंसल कहते हैं, 'ट्रेडिंग और इन्वेस्टमेंट के लिए कैपिटल अलग-अलग रखना चाहिए और उसको मेंटेन करना चाहिए, भले ही बाजार की हालत कैसी भी हो।'
लालच बुरी बला
बाजार में काफी उतार-चढ़ाव होने पर इन्वेस्टमेंट के मौके बनते हैं। ऐसे समय में आपको पैसा लगाना चाहिए लेकिन, इसमें सावधानी बरतना जरूरी है। वोलैटिलिटी वाले दौर में अक्सर लोग ट्रेडर बन जाते हैं। हालांकि, इस तरह का मार्केट ट्रेडर्स के लिए भी बहुत सुरक्षित नहीं होता। इस बारे में ओपीसी ऐसेट सलूशन के एग्जिक्युटिव चेयरमैन अजय बग्गा ने कहा, 'हाल में शेयर बाजार में जिस तरह का उतार-चढ़ाव दिखा है, वैसा हमने इधर कुछ साल में नहीं देखा था। जब मार्केट में इस तरह की वोलैटिलिटी होती है, तब छोटे ट्रेडर्स को दूर रहना चाहिए। मार्केट के सेटल होने के बाद ही पैसा लगाना चाहिए।'
मार्केट में उतार-चढ़ाव बढ़ने पर छोटे निवेशक अक्सर घबरा जाते हैं। उन्हें लगता है कि वे 'मार्केट को टाइम' कर सकते हैं यानी शेयर बाजार जिस लेवल से रिकवर करने वाला है, वे उस लेवल की पहचान कर सकते हैं। इस चक्कर में वे अक्सर अधिक ट्रेडिंग कर बैठते हैं। इससे उन्हें ब्रोकरेज चार्ज के तौर पर काफी नुकसान हो सकता है।
ब्रोकरेज फर्म्स भी उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने की कोशिश करती हैं और कमाई बढ़ाने के लिए उन्हें अधिक ट्रेडिंग की सलाह देते हैं। मिसाल के लिए, आईसीआईसीआई डायरेक्ट ने हाल ही में 'बुलेट ट्रेड' प्लान शुरू किया है। इसमें अगर ट्रेड पांच मिनट में स्क्वेयर ऑफ किया जाता है तो कोई ट्रेडिंग चार्ज नहीं लगता। एक और बात यह है कि मोबाइल ट्रेडिंग के चलते शेयरों की खरीद-फरोख्त बहुत आसान हो गई है। इससे भी स्मॉल इन्वेस्टर्स अधिक ट्रेडिंग कर रहे हैं।
घबराहट में बेचने से बचें
लॉन्ग टर्म में भारत की इकनॉमिक ग्रोथ अच्छी रहेगी। इसलिए मार्केट में गिरावट आने पर उन्हें पैनिक सेलिंग नहीं करनी चाहिए। ऐसे हालात में बाजार से बाहर निकलने की जरूरत नहीं है। याद रखिए कि शेयर बाजार से पैसा बनाने के लिए क्वॉलिटी स्टॉक्स को चुनना जरूरी है। जैसा कि वॉरन बफे ने कहा है, 'मार्केट ऐसी जगह है, जहां बेसब्रों का पैसा धीरज रखने वालों के पास चला जाता है।' ठीक ऐसे ही शेयरों की खरीदारी में भी जल्दबाजी दिखाने की जरूरत नहीं है। निर्मल बांग सिक्यॉरिटीज के प्रिंसिपल और हेड मेहराबून ईरानी कहते हैं, 'कॉर्पोरेट अर्निंग ग्रोथ के हिसाब से मार्केट में अजस्टमेंट हो रहा है। ऐसे मार्केट में सही लेवल पर पैसा लगाने के मौके मिलते रहते हैं।'
एसआईपी को मत रोकिए
अगर शॉर्ट टर्म में मार्केट गिरने की आशंका हो, तो लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स को उसके चलते सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लांस (एसआईपी) रोकने की जरूरत नहीं है। अगर आप एसआईपी रोकते हैं तो कम दाम पर शेयर खरीदने का मौका हाथ से निकल सकता है। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का फायदा उठाना चाहते हैं तो आपको एसआईपी की रकम बढ़नी चाहिए। बजाज का कहना है, 'म्यूचुअल फंड इन्वेस्टर्स को मार्केट में गिरावट आने पर उतने ही पैसे में ज्यादा यूनिट्स मिलती हैं, इसलिए लॉन्ग टर्म एसआईपी इन्वेस्टर्स को वोलैटिलिटी से खुश होना चाहिए। एसआईपी बंद करने के बजाय उन्हें अपना इन्वेस्टमेंट बढ़ा देना चाहिए।' एसआईपी को मार्केट में उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने के लिहाज से बनाया गया है। बग्गा के मुताबिक, 'किसी महीने में कई दिन तक इन्वेस्ट करने पर एसआईपी के बेनेफिट बढ़ते हैं।' मिसाल के लिए, हर महीने की पांचवीं तारीख को इनवेस्ट करने के बजाय आप उस महीने के चार दिनों में रकम लगा सकते हैं।
लार्ज कैप पर फोकस
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव की वजह ग्लोबल फैक्टर्स हैं। चीन में इकनॉमिक स्लोडाउन और अमेरिका में इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी की आशंका के चलते विदेशी निवेशक बिकवाली कर रहे हैं। इससे लार्ज कैप स्टॉक्स भी काफी सस्ते हो गए हैं। इंडिया निवेश सिक्यॉरिटीज के दलजीत सिंह कोहली का कहना है, 'लार्ज कैप स्टॉक्स में मिड कैप के मुकाबले ज्यादा गिरावट आई है। इसलिए लार्ज कैप में पैसा लगाना चाहिए।' मिड कैप स्टॉक्स अभी लार्ज कैप शेयरों की तुलना में अधिक वैल्यूएशन पर मिल रहे हैं। यह ठीक नहीं है। जहां बीएसई सेंसेक्स 20.72 के पीई पर ट्रेड कर रहा है, वहीं मिड कैप इंडेक्स 24.49 के पीई पर है। हालिया करेक्शन में अगर मिड कैप स्टॉक्स मजबूती से टिके हुए हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि आगे भी ऐसा ही होगा। इस बारे में मिजुहो बैंक के पटनायक ने कहा, 'अगर मौजूदा स्तर से रिस्क बढ़ता है तो मिड कैप में गिरावट बढ़ सकती है। इसका मतलब यह है कि शॉर्ट टु मीडियम टर्म में मिड कैप स्टॉक्स लार्ज कैप शेयरों से अधिक रिटर्न नहीं देंगे।' मिड कैप शेयरों में पैसा लगाते वक्त इनवेस्टर्स को कंपनियों के साइज का भी ख्याल रखना चाहिए। बग्गा के मुताबिक, 'अभी मिड कैप के बजाय लार्ज कैप पर ध्यान देने में फायदा है।'
पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करें
बग्गा ने यह भी बताया कि इन्वेस्टर्स को गिनी-चुनी कंपनियों में ही पूरा पैसा नहीं लगाना चाहिए। उन्हें डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो तैयार करना चाहिए। अगर आप कुछ 'हॉट स्टॉक्स' में पैसा लगाते हैं तो अच्छे समय में ज्यादा रिटर्न मिल सकता है, लेकिन बुरे वक्त में आपको इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। मिसाल के लिए, एमटेक ऑटो फरवरी, 2014 में 65 रुपये का शेयर था और उस साल जून तक वह 260 रुपये का हो गया था। उसके बाद साल भर तक इसमें स्टेबिलिटी दिखी। हालांकि, अगस्त 2015 में 170 रुपये के लेवल से इसमें तेज गिरावट आई और सितंबर में यह 28 रुपये का रह गया।
आदर्श स्थिति में रिटेल इन्वेस्टर्स को म्यूचुअल फंड के जरिए पैसा लगाना चाहिए। इससे उन्हें डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो का फायदा मिलता है। जो लोग सीधे शेयर खरीद रहे हैं, उन्हें भी डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बनाना चाहिए। बंसल का कहना है कि आदर्श पोर्टफोलियो में 15 से 20 शेयर होने चाहिए। इससे रिस्क काफी कम हो जाता है और आपको बहुत ज्यादा शेयरों को ट्रैक भी नहीं करना पड़ता।
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