सेंसेक्स 24 अगस्त को 1,625 पॉइंट्स गिरा था। पिछले हफ्ते गुरुवार और शुक्रवार को इसमें रिकवरी हुई, लेकिन इस हफ्ते एक बार फिर मार्केट पर कमजोरी हावी हो गई है। इससे इनवेस्टर सेंटीमेंट पर बुरा असर हुआ है। 24 अगस्त यानी ब्लैक मंडे के दिन सेंसेक्स में 5.94 पर्सेंट गिरावट आई थी। इसके बाद से इनवेस्टर्स के मन में एक सवाल घूम रहा है- क्या यह बुल मार्केट के बीच में वाला शॉर्ट टर्म करेक्शन है या बेयर फेज यानी मंदी के दौर की शुरुआत है?
हमने इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए मार्केट एक्सपर्ट्स से बात की। उनमें से ज्यादातर का कहना है कि बुल मार्केट बना हुआ है और इनवेस्टर्स को बाजार में भारी उतार-चढ़ाव से परेशान नहीं होना चाहिए। सुंदरम म्यूचुअल फंड के चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर (सीआईओ) कृष्ण कुमार ने बताया, 'यह बुल मार्केट का करेक्शन है। इसे मंदी के दौर की शुरुआत कहना ठीक नहीं होगा।' दूसरे एक्सपर्ट्स का कहना है कि करेंट लेवल से मार्केट में ज्यादा गिरावट नहीं आएगी। बिड़ला सनलाइफ म्यूचुअल फंड के सीईओ ए बालासुब्रमण्यन ने बताया, 'मार्केट में पहले ही ज्यादा गिरावट हो चुकी है। इसलिए इस लेवल से इसमें बहुत ज्यादा करेक्शन नहीं होगा।'
अधिकतर एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि लॉन्ग टर्म में भारतीय शेयर बाजार से बढ़िया रिटर्न मिलेगा। हालांकि, इनमें से कुछ का कहना है कि तेजी का दौर शुरू होने से पहले मार्केट में और गिरावट आ सकती है। सिस्टेमैटिक्स शेयर्स ऐंड स्टॉक्स के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट जसप्रीत सिंह ने बताया, 'शॉर्ट टर्म में हमें बाजार के और गिरने की आशंका है। निफ्टी के 7,400 के लेवल पर जाने पर खरीदारी की जा सकती है।' वहीं, मार्केट एक्सपर्ट आनंद टंडन ने बताया, 'मार्केट को अब पिछला लाइफ टाइम हाई लेवल पार करने में कुछ वक्त लगेगा। अगले 6 महीनों में बाजार में अधिक तेजी नहीं आएगी। इसलिए खरीदारी करने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।'
अहम इवेंट्स
सितंबर में कई इंपॉर्टेंट इवेंट्स हैं। इनवेस्टर्स को इन पर नजर रखनी चाहिए। अमेरिकी फेडरल रिजर्व सितंबर में इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी के बारे में फैसला कर सकता है। आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू मीटिंग भी इसी महीने में होनी है। पहले क्वॉर्टर में जीडीपी ग्रोथ 7 पर्सेंट रही है, जबकि इसके 7.5 पर्सेंट रहने की उम्मीद जताई जा रही थी। इसलिए इंडस्ट्री की ओर से रेट कट की मांग तेज हो रही है। ऐसे में रिजर्व बैंक रीपो रेट में एक बार फिर कटौती कर सकता है। बालासुब्रमण्यन ने कहा, 'हमारा मानना है कि फेडरल रिजर्व नवंबर से ही इंटरेस्ट रेट में बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू करेगा। वहीं, सितंबर में आरबीआई रीपो रेट में 0.25 पर्सेंट की कमी कर सकता है। इसके बाद वह दिसंबर में और 0.25 पर्सेंट इंटरेस्ट रेट घटा सकता है।'
इन पॉजिटिव चीजों के बावजूद फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स (एफआईआई) भ्रमित नजर आ रहे हैं। पिछले एक महीने में एफआईआई ने भारतीय शेयर बाजार से काफी पैसा निकाला है। शॉर्ट टर्म में यह ट्रेंड बना रह सकता है। टाटा म्यूचुअल फंड के सीआईओ रितेश जैन ने बताया, 'जब तक ग्लोबल मार्केट्स में स्टेबिलिटी नहीं आती, तब तक हमें भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश रुके रहने के आसार दिख रहे हैं।' यह भी सच है कि 2013 की तुलना में भारतीय शेयर बाजार के फंडामेंटल्स अच्छे हैं, लेकिन एफआईआई इसके बावजूद यहां पैसा नहीं लगा रहे हैं। दरअसल, एफआईआई अपना रिटर्न डॉलर में देखते हैं और युआन डीवैल्यूएशन के बाद रुपये में कमजोरी आई है। इससे उनका सेंटीमेंट खराब हुआ है। पिछले पांच साल में रुपये के मुकाबले डॉलर 44 पर्सेंट मजबूत हुआ है। इसका मतलब यह है कि इस दौरान रुपये में उन्होंने शेयर बाजार से जो पैसा बनाया, वह डॉलर की मजबूती के चलते कम हुआ है।
सेंसेक्स में हालिया गिरावट के बावजूद यह 5 साल पहले के लेवल से 7,500 पॉइंट्स ऊपर है। डोमेस्टिक इनवेस्टर्स के लिए एब्सॉल्यूट टर्म में यह 44 पर्सेंट का रिटर्न है। हालांकि, फॉरेन इनवेस्टर्स इतने खुशकिस्मत नहीं रहे हैं। 5 साल पहले डॉलेक्स 30 3,194 के लेवल पर था, जो 28 अगस्त को 3,275 पर पहुंच गया था। अगर 5 साल बाद भी एफआईआई भारतीय शेयर बाजार से रिटर्न हासिल नहीं कर पाए हैं तो वे इस मार्केट में और पैसा क्यों लगाएंगे? फर्स्ट ग्लोबल के वाइस चेयरमैन और जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर शंकर शर्मा ने कहा, 'एफआईआई के लिए यह बुल मार्केट नहीं रहा है। उनके लिए तो यह बेयर मार्केट की रैली है।'
जनवरी 2007 में डॉलेक्स 30 ऑल टाइम हाई लेवल 4,365 पर था। यह अभी उससे 25 पर्सेंट नीचे है। हालांकि, डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशंस धीरे-धीरे मार्केट के लिए अच्छा सपोर्ट बनकर सामने आए हैं। इंडियन इनवेस्टर्स गिरते बाजार में पैसा लगा रहे हैं। इससे मार्केट को स्टेबिलिटी मिली है। बालासुब्रमण्यन ने बताया, 'इक्विटी म्यूचुअल फंड्स ने 24-25 अगस्त को 2,200 करोड़ रुपये जुटाए। इससे भारतीय शेयर बाजार की ताकत का पता चलता है। पहले जब मार्केट में गिरावट आती थी तो हालात एकदम उलटे होते थे।'
क्या डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट जारी रहेगी? इस बारे में कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के इकॉनमिस्ट सुभोदीप रक्षित ने कहा, 'भारतीय इकॉनमी के फंडामेंटल्स 2013 की तुलना में अभी अच्छे दिख रहे हैं। हमें लगता है कि मार्च 2016 तक डॉलर के मुकाबले रुपया 65.5 पर रहेगा। हालांकि, इस बीच सेंटीमेंट के चलते रुपया कमजोर भी हो सकता है, लेकिन यह 66-67 के लेवल को पार नहीं करेगा।' हालांकि, सभी एक्सपर्ट्स ऐसी राय नहीं रखते।
प्रॉफिट ग्रोथ से मायूसी
शेयर बाजार के लिए सबसे बड़ा रिस्क कॉरपोरेट प्रॉफिट ग्रोथ में कमी है। मई 2014 में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद 'अच्छे दिन' की उम्मीद में शेयर बाजार में तेजी शुरू हुई थी, लेकिन कॉरपोरेट रिजल्ट्स से अब तक इसकी आहट नहीं दिखी है। इसका असर यह हुआ है कि स्टॉक्स का वैल्यूएशन काफी बढ़ गया है। जून क्वॉर्टर में कंपनियों की प्रॉफिट ग्रोथ सिर्फ 3 पर्सेंट रही है। रेलिगेयर इनवेस्को म्यूचुअल फंड के सीआईओ वेत्रि सुब्रमण्यम ने कहा, 'वैल्यूएशन और प्रॉफिट ग्रोथ के बीच तालमेल नहीं होने का भी असर शेयर बाजार पर दिख रहा है। मार्च क्वॉर्टर का रिजल्ट खराब रहा था और जून क्वॉर्टर में प्रॉफिट ग्रोथ मामूली रही है। 2015-16 में कॉरपोरेट प्रॉफिट ग्रोथ अच्छी नहीं रहेगी।' अच्छी बात सिर्फ इतनी है कि सेंसेक्स के 10 साल का एवरेज वैल्यूएशन 19.17 रहा है और उस लिहाज से मार्केट अभी अट्रैक्टिव दिख रहा है। जून क्वॉर्टर में सेंसेक्स का वैल्यूएशन 10 साल के एवरेज से 25 पर्सेंट अधिक था। 24 अगस्त और उसके बाद मार्केट में आई गिरावट के चलते सेंसेक्स का पीई 20 हो गया है, जो लॉन्ग टर्म एवरेज से सिर्फ 7 पर्सेंट अधिक है।
लार्ज कैप या मिड कैप?
मार्केट में आई हालिया गिरावट में बहुत कम शेयर मजबूती से टिके रह पाए। लार्ज कैप कंपनियों की तुलना में मिड और स्मॉल कैप स्टॉक्स में ज्यादा गिरावट आई। हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि इनमें इतना करेक्शन नहीं हुआ है कि इनवेस्टमेंट किया जा सके। दरअसल, पिछले दो साल में मिड और स्मॉल कैप स्टॉक्स में काफी तेजी आई थी। जहां बीएसई मिड कैप इंडेक्स पिछले दो साल में डबल हो गया है वहीं इस दौरान सेंसेक्स में सिर्फ 42 पर्सेंट की तेजी आई है। हालिया क्रैश के बाद मिड कैप का वैल्यूएशन प्रीमियम कम हुआ है, लेकिन यह अभी भी ज्यादा है। ऐतिहासिक तौर पर लार्ज कैप स्टॉक्स की तुलना में मिड कैप का वैल्यूएशन कम रहा है। इसलिए इनवेस्टर्स को खास एहतियात बरतनी चाहिए।
म्यूचुअल फंड्स की मदद
छोटे इनवेस्टर्स के लिए शेयर बाजार में इनवेस्टमेंट का बेस्ट तरीका म्यूचुअल फंड्स हैं। वे अपने लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट प्लान पर शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का असर नहीं पड़ने देते। मार्केट में गिरावट आने पर म्यूचुअल फंड की यूनिट्स सस्ती होती हैं और इससे आपको कम कीमत पर ज्यादा यूनिट्स खरीदने का मौका मिलता है। हालांकि, इस चक्कर में सीधे शेयरों में पैसा नहीं लगाना चाहिए। क्रैश के बाद कई शेयर पेनी स्टॉक्स बन गए हैं, लेकिन उन्हें खरीदने के लालच से दूर रहिए। अगर कोई शेयर 2 साल के लो लेवल पर ट्रेड कर रहा है तो आगे चलकर वह 5 साल के लो लेवल पर भी जा सकता है।
कौन से सेक्टर्स अच्छे हैं
सबसे खराब हालत कमोडिटी स्टॉक्स की है। ब्लूमबर्ग कमोडिटी इंडेक्स 2003 के बॉटम से भी नीचे चला गया है। यह 16 साल के लो लेवल पर है। इस तरह का क्रैश उनके लिए अच्छा होता है, जो कमोडिटी कंज्यूम करते हैं, लेकिन इनवेस्टर्स के लिए यह खतरे की निशानी है। कमोडिटी मार्केट में गिरावट ग्लोबल इकॉनमिक रिसेशन का संकेत भी हो सकता है। भारत में ज्यादातर कमोडिटी कंपनियों ने कैपेसिटी बढ़ाने या एक्विजिशन के लिए काफी कर्ज लिया था। अब वे उसकी कीमत चुका रही हैं। टाटा म्यूचुअल फंड के सीआई रितेश जैन ने बताया, 'कमोडिटी स्टॉक्स से दूर रहना चाहिए। खासतौर पर मेटल कंपनियों से, जिनकी बैलेंस शीट की हालत बहुत खराब है। उन कंपनियों को तो बिल्कुल भी हाथ नहीं लगाना चाहिए, जिन्होंने डॉलर में लोन लिया हुआ है।'
इकनॉमिक रिकवरी और इंटरेस्ट रेट में गिरावट आने से रेट सेंसिटिव सेक्टर्स को फायदा हो सकता है। बैंकिंग ऐसा ही सेक्टर है, लेकिन बैंकों ने मेटल्स और पावर जैसे मुश्किल में फंसे सेक्टर को काफी लोन दिया हुआ है। इन कंपनियों को ज्यादा लोन सरकारी बैंकों ने दिया है, इसलिए इनसे दूर रहना चाहिए। बालासुब्रण्यन ने कहा, 'हमें वैसे प्राइवेट सेक्टर बैंक पसंद हैं, जो रिटेल सेगमेंट पर ध्यान देते हैं।'
हालिया क्रैश के बाद कुछ अच्छी कंपनियों के शेयर सस्ते हुए हैं। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के को-हेड और सीनियर एग्जिक्युटिव डायरेक्टर संजीव प्रसाद ने बताया, 'करेक्शन के बाद कई प्राइवेट बैंक और ऑटो स्टॉक्स सस्ते हो गए हैं। हमें एक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और बजाज ऑटो पसंद हैं।'
आईटी पर नहीं पड़ी आंच
हालिया क्रैश से कुछ ही सेक्टर बचे हैं और आईटी उनमें से एक है। एलआईसी नोमुरा म्यूचुअल फंड के चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर (इक्विटी और डेट) सर्वणा कुमार ने बताया, 'डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू कम होने से आईटी कंपनियों को फायदा होगा। अमेरिकी इकॉनमी भी रिकवर कर रही है और यह भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अच्छी खबर है, जिन्हें अधिक बिजनस वहां से मिलता है।' उन्होंने कहा कि इनवेस्टर्स इस सेगमेंट में इंफोसिस और टीसीएस में बने रह सकते हैं। फार्मा सेक्टर को भी रुपये की वैल्यू कम होने से फायदा होगा। इसके साथ, एक्सपोर्ट ओरिएंटेड टेक्सटाइल, लेदर जैसे सेक्टर्स का परफॉर्मेंस भी आगे चलकर बढ़िया रह सकता है। सिस्टेमैटिक्स शेयर्स ऐंड स्टॉक्स के अरोड़ा ने कहा, 'हमें लेदर सेक्टर में मयूर यूनिकोटर्स पसंद है।'
कमोडिटी प्राइसेज में कमी से एफएमसीजी जैसे सेक्टर्स को फायदा हो सकता है। हालांकि, मार्केट में गिरावट के बावजूद इस सेगमेंट के शेयर महंगे हैं। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के प्रसाद ने बताया, 'कंज्यूमर सेक्टर के शेयर अभी भी महंगे हैं।' उनका कहना है कि इस साल मॉनसून की बारिश सामान्य से कम रही है, जिसका रूरल कंजम्पशन पर बुरा असर हो सकता है। इससे कुछ कंजम्पशन थीम वाली कंपनियों का बिजनस प्रभावित होगा।
अब डेट प्रॉडक्ट्स ज्यादा अट्रैक्टिव
अगर आरबीआई रेपो रेट में उम्मीद के मुताबिक कटौती करता है तो लॉन्ग टर्म डेट फंड्स से अगले एक साल में 15 पर्सेंट का रिटर्न मिल सकता है
लॉन्ग टर्म में इक्विटी से बेहतर रिटर्न मिलेगा, लेकिन ज्यादातर एक्सपर्ट्स का कहना है कि शॉर्ट टर्म में डेट से अच्छा पैसा बनाया जा सकता है। फर्स्ट ग्लोबल के वाइस चेयरमैन और जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर शंकर शर्मा ने बताया, 'कैपिटल गेंस की संभावना के चलते अभी भारतीय बॉन्ड्स काफी अट्रैक्टिव दिख रहे हैं।' इसकी वजह यह है कि आने वाले महीनों में इंटरेस्ट रेट में कमी आ सकती है। वहीं, टाटा म्यूचुअल फंड के सीआईओ रितेश जैन ने कहा, 'सितंबर पॉलिसी रिव्यू से पहले रिजर्व बैंक रीपो रेट में कटौती कर सकता है। अगले साल और रेट कट होंगे। हमें लगता है कि मार्च 2016 तक 10 साल के सरकारी बॉन्ड की यील्ड घटकर 7.25-7.35 पर्सेंट तक हो जाएगी, जो अभी 7.78 पर्सेंट है।' पिछले एक साल में 10 साल के सरकारी बॉन्ड की यील्ड 8.56 पर्सेंट से घटकर इस लेवल तक आई है।
फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स के पैसा निकालने के चलते शेयर बाजार में रिस्क बढ़ गया है। इस वजह से भी एक्सपर्ट्स डेट के बारे में सोचने की सलाह दे रहे हैं। जैन ने कहा, 'इक्विटी मार्केट में करेक्शन का डर बना हुआ है। वहीं, फिक्स्ड इनकम मार्केट्स में फॉरेन ओनरशिप काफी कम है। एफआईआई ने जितना पैसा शेयर बाजार में लगाया है, उसकी तुलना में बॉन्ड में उनका इनवेस्टमेंट 2 पर्सेंट से भी कम है।'
लॉन्ग टर्म बॉन्ड्स पर इंटरेस्ट रेट में बदलाव का अधिक असर होता है। इसलिए इनवेस्टर्स को लॉन्ग ड्यूरेशन वाले डेट फंड्स में पैसा लगाना चाहिए। अगर इंटरेस्ट रेट में उम्मीद के मुताबिक गिरावट आती है तो लॉन्ग टर्म डेट फंड्स से साल भर में 15 पर्सेंट के करीब रिटर्न मिल सकता है। इसमें 8 पर्सेंट यील्ड के तौर पर और 7 पर्सेंट कैपिटल एप्रिसिएशन के तौर पर मिलेगा। हालांकि, लॉन्ग टर्म बॉन्ड्स में ज्यादा उतार-चढ़ाव भी आता है। अगर आप स्टेबल रिटर्न चाहते हैं तो शॉर्ट टर्म बॉन्ड फंड्स में पैसा लगाइए। इन स्कीम्स से ज्यादा रिटर्न नहीं मिलेगा क्योंकि पोर्टफोलियो में शॉर्ट टर्म बॉन्ड्स के चलते वे ज्यादा कैपिटल एप्रिसिएशन हासिल नहीं कर सकते। इसके बावजूद अगले एक से 2 साल में इनसे 9 पर्सेंट का रिटर्न मिल सकता है। सिस्टेमैटिक्स शेयर्स ऐंड स्टॉक्स के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट जसप्रीत सिंह अरोड़ा ने बताया, 'रिस्क-रिवॉर्ड बेसिस पर लॉन्ग ड्यूरेशन वाले डेट फंड्स अट्रैक्टिव नजर आ रहे हैं। अगर बॉन्ड फंड्स से अगले एक साल में 15 पर्सेंट रिटर्न मिलने की उम्मीद है तो मैं इक्विटी से इससे कहीं अधिक रिटर्न की उम्मीद करूंगा।'
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