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बड़ी बीमारी के इलाज की पॉलिसी

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कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों को कवर करने के लिए बाजार में तमाम इंश्योरेंस पॉलिसी मौजूद हैं। ऐसी पॉलिसीज के बारे में विस्तार से जानकारी दे रही हैं चंद्रलेखा मुखर्जी :

कैंसर के इलाज पर आने वाला खर्च चिंता की बात है। यह चिंता और भी गंभीर डब्लूएचओ के उन आंकड़ों से हो जाती है, जिनके मुताबिक देश में हर साल कैंसर के 10 लाख नए मरीज सामने आ रहे हैं। शुरुआत में ही अगर इस बीमारी की पहचान कर ली जाए तो इसका इलाज मुमकिन है, लेकिन समस्या इलाज के खर्च को लेकर हो सकती है। दो हजार कैंसर के मरीजों पर देश में एक कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर है। जाहिर है, इन डॉक्टरों की फीस भी बहुत ज्यादा है। ऐसे में कैंसर के इलाज के लिए इंश्योरेंस की मदद लेना बेहद जरूरी है। बाजार में ऐसी कई पॉलिसी हैं, जो कैंसर के इलाज के खर्च को कवर करती हैं, हालांकि यह तय कर पाना बेहद मुश्किल काम है कि इनमें से कौन-सी पॉलिसी ली जाए।

क्यों जरूरी है इंश्योरेंस

कैंसर का इलाज लंबे समय तक चलता है। इस वजह से इसके इलाज पर आने वाला खर्च एकमुश्त नहीं होता। थोड़े-थोड़े समय के बाद इसके खर्च आते रहते हैं। ऐसे में किसी परिवार के लिए यह एक बड़ा बोझ बन जाता है। जाहिर है, इसके खर्च से निबटने के लिए एक अच्छी इंश्योरेंस पॉलिसी लेना जरूरी है। वैसे, इंश्योरेंस इंडस्ट्री नए-नए फीचर्स के साथ ऐसे कई प्रॉडक्ट लॉन्च भी कर रही है। इनमें मुख्यत: तीन तरीके की पॉलिसी हैं। ये हैं : रेग्युलर हेल्थ पॉलिसी जो हॉस्पिटलाइजेशन के खर्च को कवर करती है और क्रिटिकल इलनेस कवर जो कैंसर समेत बहुत सारी गंभीर बीमारियों के खर्च को कवर करता है। तीसरी कैटिगरी है स्पेशलाइज्ड कैंसर केयर प्रॉडक्ट।

कौन सा बेहतर

रेग्युलर हेल्थ प्लान चाहे वह इंडिविजुअल हो या फैमिली फ्लोटर, हॉस्पिटलाइजेशन पर आने वाले खर्च को कवर करती है। सम इंश्योर्ड की लिमिट के भीतर यह इलाज का खर्च कवर करती है। इसमें कैंसर समेत तमाम बड़ी क्रिटकिल इलनेस कवर होती हैं, लेकिन इसमें वेटिंग पीरियड तीन से चार साल का होता है। इसकी कुछ कमियां भी हैं। पहली यह कि यह थोड़ी महंगी है। 10 लाख की पॉलिसी किसी 30 साल के शख्स के लिए ली जाए तो उसका सालाना प्रीमियम 10 हजार रुपये होता है। इसकी तुलना में डेडिकेटेड क्रिटिकल इलनेस कवर सस्ता होता है। इसमें 10 लाख की पॉलिसी किसी 30 साल के शख्स के लिए लेने पर सालाना प्रीमियम 3000 रुपये ही देना होता है। अगर रेग्युलर प्लान को फैमिली फ्लोटर के तौर पर दो लोगों लिए लिया जाए तो उसका सालाना प्रीमियम बैठता है 15 हजार रुपये, जबकि यही प्रीमियम डेडिकेटेड पॉलिसी में 6000 रुपये होता है। दूसरी कमी यह है कि रेग्युलर पॉलिसी में सब लिमिट होती हैं, मसलन रूम रेंट, डॉक्टर की फीस, दवाएं, इंटेंसिव केयर, एंबुलेंस चार्ज आदि के खर्चों की सीमा तय होती है। आमतौर पर इसमें हॉस्पिटालाइजेशन का पूरा खर्च कवर नहीं हो पाता है और मरीज को अपनी जेब से कुछ न कुछ खर्च करना पड़ ही जाता है। आईसीआईसीआई लॉम्बर्ड जनरल इंश्योरेंस के चीफ अंडरराइटिंग ऑफिसर संजय दत्त कहते हैं कि डेडिकेटेड क्रिटिकल इलनेस प्लान ऐसे मामलों में ज्यादा से ज्यादा खर्चों को कवर कर लेते हैं और इनके लिए बहुत ज्यादा प्रीमियम भी नहीं देना पड़ता। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो जाने पर कई बार इलाज के खर्च के साथ-साथ दूसरे खर्च भी आ जाते हैं और ऐसे में घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो सकता है। इस नजरिये से भी डेडिकेटेड क्रिटिकल इलनेस कवर अच्छा रहता है, क्योंकि इसमें पॉलिसी में लिस्टेड 20-30 बीमारियों के होने पर एकमुश्त रकम दे दी जाती है, जिसे आप अपनी मर्जी से खर्च कर सकते हैं। रेग्युलर हेल्थ प्लान की तरह इसमें क्लेम लेने के लिए आपको हॉस्पिटल बिल की जरूरत नहीं पड़ती।

कौन से प्रॉडक्ट

हाल ही में एचडीएफसी लाइफ ने डेडिकेटेड कैंसर केयर प्रॉडक्ट उतारा है, जो कैंसर की शुरुआती स्टेज को कवर करता है। कंपनी सम इंश्योर्ड का 25 फीसदी शुरुआत में और 75 या 100 फीसदी अडवांस्ड स्टेज में पे करती है। इस प्लान को 85 साल की उम्र तक रिन्यू कराया जा सकता है और इसका प्रीमियम भी कम है। 35 साल के किसी शख्स के लिए 20 लाख रुपये का कवर पाने के लिए सालाना 1800 रुपये पे करने होंगे। अधिकतम 40 लाख का कवर लिया जा सकता है। आईआईसीआई प्रू लाइफ ने भी ऐसा ही कवर पेश किया था, लेकिन अब उस प्रॉडक्ट को वापस ले लिया गया है। बता दें कि अगर आप कैंसर के मरीजों की हाई रिस्क कैटिगरी में आते हैं तो आपको डेडिकेटेड प्लान ही लेना चाहिए। अगर आप ज्यादा स्मोकिंग करते हैं या कैंसर का आपका पारिवारिक इतिहास है तो आप हाई रिस्क कैटिगरी में माने जाएंगे। कैंसर के करीब 40 फीसदी मामले तंबाकू के सेवन की वजह से ही होते हैं।

इलाज का बढ़ता खर्च

कैंसर के इलाज का खर्च साल 2000 से लेकर अब तक तीन से चार गुना बढ़ चुका है।

कैंसर खर्च 2000 में खर्च 2015 में

फेफड़े 1.72 लाख रुपये 4.6 लाख रुपये

सर्विक्स 1.84 लाख रुपये 5 लाख रुपये

ओरल केविटी 1.5 लाख रुपये 4.3 लाख रुपये

ब्रेस्ट 1.5 लाख रुपये 6 लाख रुपये

कोलोरेक्टल 1.84 लाख रुपये 5 लाख रुपये

टेस्ट और खर्चे

कैंसर कौन से टेस्ट खर्च कब

ब्रेस्ट कैंसर मैमोग्राम 1000-2000 रुपये साल में एक बार

सर्विक्स पैप स्मियर 500-800 रुपये तीन साल में एक बार

प्रोस्टेट पीएसए+डिजिटल रेक्टल एग्जाम 800-1200 रुपये 50 की उम्र के बाद हर साल

कोलोरेक्टल सिग्मॉइडोस्कोपी 2500-1200 रुपये 50 की उम्र के बाद हर 5 साल बाद

टॉप 5 कैंसर के लिए ऐवरेज क्लेम

ब्रेस्ट कैंसर 59,000 रुपये

सर्विक्स, यूटराइन कैंसर 71,000 रुपये

लिप, ओरल केविटी 96,000 रुपये

लंग कैंसर 1,04,000 रुपये

कोलोरेक्टल 70,000 रुपये

फीचर्स डेडिकेटेड कैंसर केयर प्लान क्रिटिकल इलनेस कवर रेग्युलर हेल्थ प्लान

मैक्सिमम सम अश्योर्ड 40 लाख रुपये तक 50 लाख रुपये तक 1 करोड़ रुपये तक

वेटिंग पीरियड 180 दिन 90 दिन 3-4 साल

रिन्यू 85 साल तक 75-85 साल तक जीवन भर

मेडिकल चेकअप नहीं हां हां

सालाना प्रीमियम 1800 रुपये 7000 रुपये 15000 रुपये

खूबियां

- शुरुआती और अंतिम स्टेज कैंसर के लिए कवर

- कैंसर का पता चलने पर अगले तीन साल के लिए प्रीमियम नहीं देना होगा।

- कैंसर के अलावा करीब 37 और क्रिटिकल इलनेस को कवर करता है।

- कैंसर का पता चलने पर एकमुश्त फायदे

- कैंसर के अलावा और भी कई गंभीर बीमारियों में फायदेमंद

- जीवन भर रिन्यू हो सकता है

खामियां

- तय समय सीमा तक ही रिन्यू

- केवल कैंसर को कवर करता है

- तय समय सीमा तक ही रिन्यू

- बीमारी अडवांस्ड स्टेज में हो तभी कवरेज

- महंगा है।

- लंबा वेटिंग पीरियड है।

*प्रीमियम की रकम 35 साल के शख्स के लिए है। कवरेज 20 लाख रुपये होगी।

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